कौशीला सुनुवार
नेलम देबातेम् नक् ङा नेपाल
गोइयो रुप्चा, कोचा माल्ताऊ देती
जोब तुइब केयो लो ला बात
नाती पिच्छेङा राम्षी, केम्षी ला बात
फुर्क नु कुनम् गिल्ष्यो लाँबात
मरई मालमत्ता थिने मजाप्षो ला बात
थि पुकीयो मथिब दुम्षो बातेमे
वा पुकियो नेल जेषो फेबातेम्
लल भालेके सिउर् बुद्
आँन चाँ पोबातेम्
नेलम् चुरोट तुबातेमे
सुरुवालइयो चाकतार चाषा पाइबातेम्
बेसान थिब दुम्षा कोरेमे
मिच खृष्षा नचे पाइबातेम्
केट प्रोइचा कली कोरेमे
आधा राँ सुम्ब वा पाईबातेम्
होइतेक चलेबातेम्
पुलिस, ट्राफिक कलीयो
केटके बुजो पाइबातेम्
जोब तुइब पुकीयो
आम कलीला होइती सरेबातेम्
नेता पुकीयो कुर्सी थित्मेङा मेरे
मुरके राग ला हिरबातेम्
मबाष्यो लो ला पाइबातेम्
सिदा मुरके मिचीम् फुर्क फुइबातेम्
आँमके नु मुरके मचिनेबातेम्
दुम्षो गेल्षो सुइयो मबाम
नेल ष्यथ गुई लामला बातेम्
ग्यँइष्यँरेले पाँ बुचा द तेमेतेमे
नेप्षा चुमुषा गोलबातेम्
ओपा रुबुनु आदेषो कका बामात
नकङा नेपाल !
गोइ चहीँ दोदेषो लानिनी !!
(कुलदीप सुनुवार स्मृति राष्ट्रिय कविता प्रतियोगिता २०६५ मा प्रतियोगी कविता)